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राजस्थानी कवितावां

राजस्थानी कविता: मोहन थानवी री कवितावां

वाणी प्रकाशन: 'मैं एक हरफ़नमौला'

वाणी प्रकाशन: 'मैं एक हरफ़नमौला' : 'मैं एक  हरफ़नमौला - ए .के. हंगल  'सब कुछ वैसे ही हुआ जैसी कि उम्मीद थी  । मैंने अधिकारियों को सन्देश भिजवा दिया कि मैं अब हिन्...

साझा मंच: वीर शिरोमणी महाराजा दाहिर

साझा मंच: वीर शिरोमणी महाराजा दाहिर : महाराजा दाहिर की जयंती पर 25 अगस्त को विशेष पुण्य सलिला सिंध भूमि वैदिक काल से ही वीरों की भूमि रही है। वेदों की ऋचाओं की रचना इस पवित्...

गर्जना होती मचता द्वन्द्व

चारों ओर रेत ही रेत कभी छाते बादल बरसते और... थमती रेत बिजली चमकती मसले बनते गर्जना होती द्वन्द्व मचता बिखरे स्वप्न इकट्ठा होते गांठ बंधती कारीगर रोंधते जमीन खोदते विगत नींव हिलती इमारत ढहती चलती आंधी रह जाती चारों ओर रेत ही रेत

‘‘गुलामी की जंज़ीर’’ से निकले….

‘‘गुलामी की जंज़ीर’’ से निकले…. ‘‘गुलामी की जंज़ीर’’ से निकले.... ( अजमेर से सिंधी में प्रकाशित हिंदू दैनिक के 15 अगस्त 2011 के संस्करण में ---- ) ‘‘गुलामी की जंज़ीर’’ से निकले, ‘‘आजादी की बेड़ी’’ मंे पहुंचे गुलाम बेगम बादशाह ( अजमेर से सिंधी में प्रकाशित हिंदू दैनिक के 15 अगस्त 2011 के संस्करण में  —- ) ‘‘गुलामी की जंज़ीर’’ से निकले, ‘‘आजादी की बेड़ी’’ मंे पहुंचे गुलाम बेगम बादशाह आधी रात को जब दुनिया सोई हुई थी। खामोश दीवारों पर टंगे 1947 के कैलंेडर के अगस्त माह के पृष्ठ पर आधे बीते दिनों की तारीख परिवर्तित हो रही थी। तब आजादी ने गुलामी को जलावतन कर राष्ट्र को जाग्रत किया। गुलामी की जंज़ीरें काट कर हम आजादी की बेड़ी ( नाव ) में पहुंच गए। जंज़ीर अपराधियों को कैद में रखने के लिए और जानवरों को काबू में करने के काम में लाई जाती है। बेड़ी  नदी, तालाब पार करने के लिए इस्तेमाल की जाती है। लेकिन, बेड़ी का एक अर्थ जंज़ीर भी है। आजादी की बेड़ी के स्वागत – अभिनंदन में खूब हल्ला हुआ। नाजुक दौर में कितने ही लोगांे ने अपनी जान दे दी। ( कितने ही लोगों की जानें ले ली गई ) । उन आजादी के दीवा

ईद है मेरी रहमत है तेरी खुश है जमाना आज ईद है मेरी

ईद है मेरी रहमत है तेरी खुश है जमाना  आज ईद है मेरी दिल है दीवाना आज ईद है मेरी रामनगर में जलसा आज ईद है मेरी रघुनाथ के घर दावत आज ईद है मेरी रहमत है तेरी खुश है जमाना आज ईद है मेरी की हैं दुआएं ईदगाह में सबका भलाकर मालिक गरीब को अमीरी दे अमीर को रख सदा पाक सुल्तान और राजा की दोस्ती रख कयामत तक सुन सबकी परवरदिगार खुश रख सबको मालिक रहमत है तेरी खुश है जमाना आज ईद है मेरी बच्चों की ईदी भरी झोली में है तालीम का माल रखेगा रहमान भी हुजूर अब्बा का ख्याल सलमान न हटायेगा कभी अल्लाह तेरा ख्याल मुसलमान का फर्ज करेंगे अदा न रहेगा मलाल रहमत है तेरी खुश है जमाना आज ईद है मेरी दिल है दीवाना आज ईद है मेरी रामनगर में जलसा आज ईद है मेरी रघुनाथ के घर दावत आज ईद है मेरी रहमत है तेरी खुश है जमाना आज ईद है मेरी

बादळ सागै उड़'र बिजली सागै नाचणो / बादल संग उड़कर दामिनी संग नृत्य करना

होंठ माथै पड़ी बिरखा री बूंद भीतर उतार लेवां / बादळ सागै उड़'र बिजली सागै नाचणो / पंछियाँ स्यूं पंख उधारी ले'र हवावाँ रौ कर्जो चुकाणो / कागद री नांव नै रोही में बैवती नद्यां री लहरां भरोसे तिराणो / धोरां बिचालै ** रेशम - सी लाल डोकरी ** जोवा अ'र हथेलियाँ मायं साम्भ'र स्कूल रै साथीडा माथै *रौब* मारणो / कितरौ चोखो  लागै / बाळपणे नै फेरूँ  जी लेवणो ! ___ --- HINDI ___होंठों पर टपकी* बरसात की बूंदों को अपने में समेट लेना / बादल संग उड़कर दामिनी संग नृत्य करना / पंछियों के पंख उधर मांग कर हवाओं का ऋण चुकाना / कागज़ की नाव को सड़क किनारे  उफनती सरिता की लहरों पर छोड़ना / धोरों के बीच *रेशम - सी लाल डोकरी* खोजना और हथेली में सहेज कर स्कूल में *धाक* जमाना.../ कितना अच्छा लगता है / फिर से बचपन पा जाना... 

खामोशी गाती : कविता खामोशी गाती हर रोज रूप बदल कर आता कोलाहल कहता कुछ नहीँ खुद किसी से पर हर किसी से बस अपने बारे मेँ कहलाता ... ध्वनि से श्रव्य और दृश्य से अनुभूत काव्य श्रृँगार का प्रादुर्भाव निश्चय ही किसी काल मेँ 21 मार्च को ही हुआ होगा यह दिवस प्रकृति का प्रिय जो है हरी चुनरी से सजी इठलाती धरा पर नवपल्लव, अधखिली कलियाँ, कुलाँचे भरते मृग-शावक, मँडराते भँवरे, पहाड़ोँ पर बर्फ का पिघलना और धूप की बजाय छाँव मेँ सुस्ताते वन्यजीवोँ के गुँजन से जो अनुभूति हुई उसे आदि कवि खामोशी का गीत = "कविता" की सँज्ञा न देता तो "अहसास" प्राण विहीन हो पाषाण युग से आगे का यात्री नहीँ बन पाता सँवेदनाएँ पाषाण रह जाती प्रकृति कविता न गाती तो मानवता कैसे मुस्काती !

कुछ बहुत कुछ ... बहुत कुछ न कुछ !

कुछ बहुत कुछ कहते हैं... बहुत कुछ कुछ नहीं कहते...!!!...कुछ लोग कुछ विशेष कार्य न करके भी कुछ न कुछ खासियत जोड़ कर कुछ न कुछ अपने ही बारे में बहुत लोगो को  कुछ बताते रहते हैं !!!.. जबकि ... बहुत लोग बहुत कुछ उल्लेखनीय कार्य करने के बाद भी कुछ लोगो को भी कुछ नहीं बताते...!!! कुछ बहुत कुछ में से निकालने के लिए कुछ बहुत कुछ कुछ कार्य करते हैं...कुछ बहुत कुछ कार्य होते हुवे भी कुछ नहीं करते...

बेड़ियां टूटी या प्रतीक बनाए कृष्ण तेरी लीला में रहस्य समाए

बेड़ियां टूटी या प्रतीक बनाए कृष्ण तेरी लीला में रहस्य समाए इतिहास है या दंतकथा हे कृष्ण तू ही बता बेड़ियां टूटी या प्रतीक बनाए कृष्ण तेरी लीला में रहस्य समाए द्रोपदी के चीर को दिया विस्तार तूने भ्रांति है या द्वन्द्व पैदा किया कवि ने युद्ध और कर्म क्षेत्र को गीतों में ढालने वाले ज्ञानामृत के सागर मीरां के लिए प्रेम के प्याले पुराणों से मरीचिका बनती बिगड़ती कथाओं से दुनिया इतिहास की बातें सुनती कालिहदेह यमुना के तल में था कभी सुना है तुमने सागर में कहीं उसका स्थान तय किया है क्या वही है बरमूडा का रहस्य जो लील जाता है जहाज अरे चैन से बंसरी बजाने वाले आ तेरी जरूरत है फिर आज कितने ही कंस इतिहास से निकल आए हैं आतंकवाद का संहार करने इतिहास ने तेरे ही गुण गाए हैं इतिहास है या दंतकथा हे कृष्ण तू ही बता मधुरिमा जीवन मधुरिम मृत्यु मधुरिम मधुरिम संसार प्रेम मधुरिम ममता मधुरिम मधुरिम संसार तू मधुरिम मैं मधुरिम मधुरिम संसार अपनत्व मधुरिम घनत्व मधुरिम मधुरिम संसार संगठन मधुरिम एकता मधुरिम मधुरिम संसार विद्या मधुरिम ज्ञान मधुरिम मधुरिम संसार लय मधुरिम विलय मधुरिम मधुरिम संसार

फिर से बचपन पा जाना...

होंठों पर टपकी बरसात की बूंदों को अपने में समेट  लेना / बादल संग उड़कर दामिनी संग नृत्य करना / पंछियों के पंख उधर मांग कर हवाओं का ऋण चुकाना / कागज़ की नाव को सड़क किनारे/ उफनती सरिता की लहरों पर छोड़ना / धोरों के बीच रेशम - सी लाल डोकरी खोजना और हथेली में सहेज कर स्कूल में *धाक* जमाना.../ कितना अच्छा लगता है / फिर से बचपन पा जाना...

क्रिकेट डे --- मैच रोमांचक क्षणों में था...

ये भी खूब रही --- क्रिकेट डे --- मैच रोमांचक क्षणों में पहुँच चुका था ! जीत के लिए २ रन की दरकार और आखिरी बॉल ... ! बॉलर दौड़ रहा था.... टीवी के आगे जुटे परिवार में चुप्पी छाई थी ! यहाँ तक की चार साल की बेबी ने भी दूध के लिए रोना बंद कर टीवी स्क्रीन पर नज़रें गड़ा रक्खी थी ! बॉलर ने बॉल फेंकी ... उत्तेजना बढ़ गई ... बेटमैन ने बल्ला घुमाया... शोर उठा... फिर शोर उठा .... टीवी स्क्रीन पर जूम कर सीन में साफ़ दिखाया गया .......बॉल बेट के बीच में लगी... और .... लाइट चली गई....

राग दरबारी गूंजता रहा है... गूंजता रहेगा

राग दरबारी गूंजता रहा है... गूंजता रहेगा  इस गूंज में सुनाई देते स्वरों को श्रोताओं पाठकों तक पहुंचाने का जिम्मा संजय का है।  ( काला सूरज उपन्यास से ) जिसे कपिल अपने विरुद्ध राजनीति समझ रहा था, वह तो अखबार के काम में उसके प्रति संपादकजी का विश्वास निकला। कपिल ने सोचा - संपादकजी ने प्रयोग भी करना चाहा तो मुझ पर। प्रश्न भी पूछ लिया तो क्लू साथ दे दिया। अब वह मुस्कुरा रहा था। संपादकजी ने उसकी मुस्कुराहट के उत्तर में अपने होंठों को फैलाया। बेआवाज हंसी ने उन दोनों को प्रफुल्लित कर दिया। कपिल के अपनी कुर्सी से उठने की क्रिया को नजरअंदाज करते उन्होंने कहा - बच्चू तुम्हें पढ़ा हुआ याद होगा कि  संविधान सभा में भाषण देते हुए डॉ आम्बेडकर ने कहा था कि राजनीति के क्षेत्र में समानता को अपनाने के बावजूद अगर सामाजिक-आर्थिक संरचना में भी समानता को सुनिश्चित नहीं किया जा सका तो हम विरोधाभासी जीवन जीने की बाध्यता में फंसे रहेंगे। राजनीतिक जनतंत्र तब तक टिकाऊ नहीं हो सकता जब तक उसकी आधारशिला के रूप में सामाजिक जनतंत्र न हो। आम्बेडकर सामाजिक जनतंत्र को स्वाधीनता, समानता और भ्रातष्त्व को जीवन-सिद्धां

करतार सिंह / सिन्ध ही नहीं पूरे हिन्दुस्तान के बाल-गोपालों के बचपन के दिन अभी खत्म भी नहीं हुए थे कि उन पर जिन्दगी की जिम्मेवारियों का पहाड़ लाद दिया गया

करतार सिंह / सिंधी से अनूदित उपन्यास का अंश करतार सिंह : हां यह सच है यार। मेरे जन्म से भी 10-12 साल पहले जन्मा षहीद हेमू कालाणी सन् 1942 में आजादी के लिए हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गया था। उन्हीं की देषभक्ति की बातें सुन-सुन कर ही तो मेरे और तुम्हारे मन में अंगरेजों के विरुद्ध विचारधारा पुख्ता हुई थी। रोहित: अच्छा दोस्त, अपन बीस साल पहले भी दिल्ली में मिले थे लेकिन तूने यह नहीं बताया था कि तुम्हारा नाम कैसे बदल गया। यार यह तो बता ही डालो मुझे। मेरे मन में यह बात जानने की बहुत उत्कंठा है। करतार सिंह: छोड़ो यार इस बात को... रोहित: नहीं यार ऐसे मत कर, बताओ तो सही, देखो जब तक यह बात तुम्हारे मन में दबी रहेगी तब तक तुम भी मन में दुखी होते रहोगे। करतार सिंह: हां सच कहते हो यार तुम। सुनो, मैं अपना नाम किस तरह गुमा बैठा। कैसे मेरी जिन्दगी को बचाने के लिए एक मुसलमान ने मुझे सलाह दी कि मैं गुरुद्वारे में जाउं और वहां लाहौर के अच्छे माहौल में हिन्दुस्तान-पाकिस्तान के तूफानी दौर में भी सुरक्षित रहूं। रोहित: यार तुम तो ऐसी बात कर रहे हो जिसमें हिन्दू-मुस्लिम, दोनों का प्रेम जाहिर होता है। भ

नींद में जागा-जागा- सा...

चांद मुस्कराता रहा... आधी रात को  जैसे ही रंगों से घिरे मुस्कराते चांद को देखा, कलर रिंग से घिरे चांद को... देखने के मुबारक मौके पर इस नजारे से पुलकित  बार बार कुछ सवाल भी मन में उठते रहे। चांद मुस्कराता रहा... क्या चांद के गिर्द घिरा यह रंगीन घेरा खुषहाली का संदेष देता है! क्या यह पर्यावरण प्रदूषण से कुपित आकाष की चेतावनी भरा संदेष है! क्या पृथ्वी और चांद पर किसी और रंगीन दुनिया की नजर है! ऐसे कितने ही सवालों के जवाब ढूंढ़ते हुए रात बीत गई और मुस्कराता रहा कलररिंग में घिरा खूबसूरत चांद। ज्योतिष के नजरिये से क्या यह किसी संकट के टल जाने का संकेत था जो अंतरिक्ष के राजा चांद की दुनिया के माध्यम से पृथ्वीवासियों को बता रहे थे! सितारों की दुनिया यानी ज्योतिष के जानकार इस बारे में क्या सोचते हैं! ग्रह-नक्षत्र इस बारे में क्या संकेत देते हैं! षुक्रवार का दिन मार्गषीर्षषुक्ल पक्ष की दषमी, वि सं 2006,षाके 1931, तदनुसार 27 नवंबर 2009 मगर अंग्रेजी तारीख के बदलने के समय के अनुसार रात 12 बजे बाद 28 नवंबर हो गया। एकादषी तिथि प्रारंभ हो चुकी थी सायंकाल 7.0

रवींद्र रंगमंच के लिए एक आंदोलन ऐसा भी...

र वीं द्र रं ग मं च के लिए एक आंदोलन ऐसा भी... रंगकर्मियांे की भावनाएं और करोड़ों का मंच उपेक्षित कला-साधकों की पीड़ा भरोसे में हरेभरे बाग उजड़ जाते हैं सोने वालों के स्टेशन पीछे छूट जाते हैं जागने वालों को दिखती है नटवर की अदाएं सरकार संवेदनशील हो तो अधिकारी रंगमंच बनाएं कला धर्मियों के ऐसे आंदोलनों और भावनाओं की अनदेखी संवेदनहीन सरकार और प्रशासन करता रहा है और यह द्योतक है इस बात का कि सुशासन नहीं है, क्योंकि सुशासन में सर्वप्रथम राज सांस्कृतिक धरोहरों का संरक्षण कर उन्हें नए आयाम देने में संस्कृतिकर्मियों को प्रोत्साहित करता है। बीकानेर के अधूरे निर्मित उपेक्षित मंदिर र वीं द्र रं ग मं च के लिए कला-साधकों ने मंदिर में पूजा-अर्चना को एक आंदोलन का रूप दे दिया किंतु सरकार और प्रशासनिक अधिकारियों के साथ साथ जनप्रतिनिधि तक इस ओर आंखें मूंदे बैठे हैं।  रंगमंच का निर्माण-कार्य पहले तो अधरझूल में छोड़ा गया, फिर आंदोलन के चलते इसमें प्रगति का मार्ग प्रशस्त कर आशा के दीप प्रज्वलित किए गए किंतु अब फिर से ऐसे हालात सामने आ खड़े हुए कि दूर तक भी रंगमंच की टिमटिमाती रोशनी नजर नहीं