करतार सिंह / सिंधी से अनूदित उपन्यास का अंश करतार सिंह : हां यह सच है यार। मेरे जन्म से भी 10-12 साल पहले जन्मा षहीद हेमू कालाणी सन् 1942 में आजादी के लिए हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गया था। उन्हीं की देषभक्ति की बातें सुन-सुन कर ही तो मेरे और तुम्हारे मन में अंगरेजों के विरुद्ध विचारधारा पुख्ता हुई थी। रोहित: अच्छा दोस्त, अपन बीस साल पहले भी दिल्ली में मिले थे लेकिन तूने यह नहीं बताया था कि तुम्हारा नाम कैसे बदल गया। यार यह तो बता ही डालो मुझे। मेरे मन में यह बात जानने की बहुत उत्कंठा है। करतार सिंह: छोड़ो यार इस बात को... रोहित: नहीं यार ऐसे मत कर, बताओ तो सही, देखो जब तक यह बात तुम्हारे मन में दबी रहेगी तब तक तुम भी मन में दुखी होते रहोगे। करतार सिंह: हां सच कहते हो यार तुम। सुनो, मैं अपना नाम किस तरह गुमा बैठा। कैसे मेरी जिन्दगी को बचाने के लिए एक मुसलमान ने मुझे सलाह दी कि मैं गुरुद्वारे में जाउं और वहां लाहौर के अच्छे माहौल में हिन्दुस्तान-पाकिस्तान के तूफानी दौर में भी सुरक्षित रहूं। रोहित: यार तुम तो ऐसी बात कर रहे हो जिसमें हिन्दू-मुस्लिम, दोनों का प्रेम जाहिर होता है। भ