दीर्घकालिक यात्रा को सूक्ष्म बना देने वाली शक्ति का अस्तित्व अनचाहे, अनहोनी, अकस्मात आदि क्या है! ये भी कर्म से जुड़े हैं या माया का एक रूप है...। अनचाहे ही सही, कर्मफल अवष्य मिलता है कथन को विचारते हैं तो फिर फल की चिंता किए बिना कर्म करने के संदेष को किस रूप में ग्रणह करें...! इसे माया कहें...! या... मंथन करें...! अनहोनी ही होगा जब किसी कर्म का फल नहीं मिलेगा। यह भी सच है कि कर्म चाहे कितना ही सोच विचार कर किया जाए और फल मिलना भी चाहे तय हो जैसा कि गणित में होता है, दो और दो चार और सीधा लिखने पर 22 तथा भाग चिह्न के साथ लिखने पर भागफल एक मिलेगा ही लेकिन फिर भी अप्रत्याषित रूप से भी कर्म-फल मिलते हैं। जीवन में ऐसे पल भी आते हैं जब किसी मुष्किल घड़ी में अकस्मात ही कोई अनजान मददगार सामने आ खड़ा होता है। धर्म और अध्यात्म के नजरिये से आस्थावान के लिए ऐसी अनचाहे, अकस्मात, अनहोनी ग्राह्य होती है और अच्छा होने पर प्राणी खुष तथा वांछित न होने पर दुखी होता है। यह प्रवृत्ति है। विद्वजन सुसंस्कार एवं भली प्रवृत्ति के लिए भगवत भजन का मार्ग श्रेष्ठ बताते हैं और यह सही भी है। जिज