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तस्वीर

Mohan Thanvi Shri Alam Husain Sindhi   फोटोग्राफी आज मीडिया का प्रमुख अंग है। कहते हैं तस्वीर  टैक्स्ट न्यूज से भी अधिक प्रभावी होती है। मेरे मित्र श्री मनीष पारीक और श्री आलम हुसैन सिंधी के खींचे हुए फोटो कई पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं। यहां मित्र श्री आलम हुसैन सिंधी और मेरा फोटो   ... ये हमने एक दूसरे के खींचे हैं...

फिर से बचपन पा जाना...

फिर से बचपन पा जाना... फिर से बचपन पा जाना... होंठों पर टपकी बरसात की बूंदों को अपने में समेट लेना बादल संग उड़कर दामिनी संग नृत्य करना पंछियों के पंख उधार मांग कर हवाओं का ऋण चुकाना कागज़ की नाव को सड़क किनारे उफनती सरिता की लहरों पर छोड़ना धोरों के बीच *रेशम - सी लाल डोकरी* खोजना और हथेली में सहेज कर स्कूल में *धाक* जमाना... कितना अच्छा लगता है / फिर से बचपन पा जाना...

दीर्घकालिक यात्रा को सूक्ष्म बना देने वाली शक्ति का अस्तित्व

 दीर्घकालिक यात्रा को सूक्ष्म बना देने वाली शक्ति का अस्तित्व  अनचाहे, अनहोनी, अकस्मात आदि क्या है! ये भी कर्म से जुड़े हैं या माया का एक रूप है...। अनचाहे ही सही, कर्मफल अवष्य मिलता है कथन को विचारते हैं तो फिर फल की चिंता किए बिना कर्म करने के संदेष को किस रूप में ग्रणह करें...! इसे माया कहें...! या... मंथन करें...! अनहोनी ही होगा जब किसी कर्म का फल नहीं मिलेगा। यह भी सच है कि कर्म चाहे कितना ही सोच विचार कर किया जाए और फल मिलना भी चाहे तय हो जैसा कि गणित में होता है, दो और दो चार और सीधा लिखने पर 22 तथा भाग चिह्न के साथ लिखने पर भागफल एक मिलेगा ही लेकिन फिर भी अप्रत्याषित रूप से भी कर्म-फल मिलते हैं। जीवन में ऐसे पल भी आते हैं जब किसी मुष्किल घड़ी में अकस्मात ही कोई अनजान मददगार सामने आ खड़ा होता है। धर्म और अध्यात्म के नजरिये से आस्थावान के लिए ऐसी अनचाहे, अकस्मात, अनहोनी ग्राह्य होती है और अच्छा होने पर प्राणी खुष तथा वांछित न होने पर दुखी होता है। यह प्रवृत्ति है। विद्वजन सुसंस्कार एवं भली प्रवृत्ति के लिए भगवत भजन का मार्ग श्रेष्ठ बताते हैं और यह सही भी है। जिज

मानता नहीं दिल । सच ।

मानता नहीं दिल । सच ।  सच । दिल दिल्ली पुस्तक मेले में है। हम अपने को वहां नहीं ले जा सके । गढ़ने को बहाने चार छह हैं । घर के काम । शादियों का मौसम । मौसम का पलटवार । ऑफिस से छुट्टी नहीं । आर्थिक समस्या । बस। काफी है । नहीं जा पाने के ये कारण । सच । ये भी सच । जाना ही होता तो वहीं होते। सच । क्योंकि । जो "हमकलम" दिल्ली पहुंचे उनके पास भी ज्यादा नहीं तो इतने कारण तो होते ही । सच । ये कि हममें वो ललक नहीं । जो उनमें है । सच । जिले-तहसील के तो दूर हम तो शहर के अनुष्ठानों से भी वंचित रह जाते हैं । सच । जबकि दुनियादारी के अधिकांश काम करने से हम चूकते नहीं । मानता नहीं दिल । सच । हम वहीं नहीं जा पाते जहां दिल मानता नहीं । दिल से प्रयास नहीं करते । फिर भी सच । नहीं जा पाने का मलाल तो होता ही है । पुस्तक मेले की सफलता के लिए दिल से शुभ मंगल कामनाएं । सच । *!""शुभ मँगल'"!* *! .+""+.+""+. !* *! +  HAPPY + !* *! "+.       .+" "!* *!      "+"        !*        *Day!*    .ॐशुभ मँगलॐ

इसे माया कहें...! या... मंथन करें...!!

इसे माया कहें...! या... मंथन करें...!!! भीतर के द्वन्द्व और उमड़ते विचारों को षब्दाकार देना अज्ञान को दूर करने के लिए ज्ञान की खोज में षब्दयात्रा है। यह भी कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भले ही हो लेकिन विचारों से किसी को ठेस पहुंचती हो तो अग्रिम क्षमायाचना। हां, विद्वानों का मार्गदर्षन मिल जाए तो जीवन सफल हो जाए। भारतीय संस्कृति में जीवन की सफलता की खोज अध्यात्म के माध्यम से की जाती रही है। अध्यात्म में भी कुषल प्रबंधन को  महसूस किया है तो इसके लिए कर्म किया जाना भी अनिवार्य लगा है। अध्यात्म में कर्म है ज्ञान प्राप्ति का प्रयास।  और जीवन की सफलता को फल कह सकते है। जीवन प्रबंधन से ही व्यवस्थित और सुखमय हो सकता है। बिना प्रबंधन के तो चींटी भी नहीं जीती। चींटी ही क्यों, प्रत्येक प्राणी को समूह में जीते ही हम देखते हैं। ऐसा कोई प्राणी नहीं जो अकेला जीता हो या आज तक जीया हो। पेड़-पौधों को भी समूह में लहलहाना अच्छा लगता है क्योंकि वे भी बीज रूप से प्रस्फुटित होने से लेकर मुरझाने तक एक कुषल प्रबंधन प्रणाली से विकसित होते हैं, फल देते हैं। जीवन का मकसद ही फल देना है। गीता का स

कुछ बहुत, कुछ - कुछ; कुछ बहुत कुछ, बहुत - कुछ

कुछ बहुत कुछ कहते हैं... बहुत कुछ कुछ नहीं कहते...!!!...कुछ लोग कुछ विशेष  कार्य न करके भी कुछ न कुछ खासियत जोड़ कर कुछ न कुछ अपने ही बारे में बहुत  लोगो को  कुछ बताते रहते हैं !!!.. जबकि ... बहुत लोग बहुत कुछ उल्लेखनीय कार्य  करने के बाद भी कुछ लोगो को भी कुछ नहीं बताते...!!! कुछ बहुत कुछ में से  निकालने के लिए कुछ बहुत कुछ कुछ कार्य करते हैं...कुछ बहुत कुछ कार्य होते  हुवे भी कुछ नहीं करते...