प्रेमचंद तुम लौट आओ

*खबरों में बीकानेर*🎤 
-✍️ मोहन थानवी 
प्रेमचंद तुम लौट आओ। परकाया में। और जाहिर कर दो आज के मुंशियों की बहियों के तमाम काले हरफ । साहित्य रचना को बहियां मानकर । उनमें रचे ऐसे काले हरफ तुम्हें ही जाहिर करने हैं जो तथ्य से परे हैं । साहित्य विधा की मर्यादा से बाहर है । मानवीयता की परिधि को लांघकर न जाने किसने ईजाद कर दिए।  इन असंवेदनशील भावों को खुली हवा में छोड़ रहे हैं । यह तो प्रेमचंद जी तुम्हें ही उजागर करना है । ऊल जुलूल जो शब्द लिखे जा रहे हैं और फिर उनको मंचों पर प्रतिष्ठित किया जा रहा है इसकी और भी प्रेमचंद जी आपको ही इंगित करना है । ऐसे ऐसे विषय जो हो हम और आप कभी विचार भी नहीं कर सकते उनको ऐसा सम्मानित किया जा रहा है कि बस लगता है काव्य-संसार उपन्यास जगत निबंध लेखन यात्रा वृतांत जीवनी और नाटक यह सब विधाएं साहित्य की एक उपेक्षित विधाएं हो गई है। आज असल विधाएं तो वे हैं जो आज धूम मचा रही है । कई विधाएं ऐसी हैं जिनका यहां नाम लिखना भी मुझे आपको विचलित कर देने वाली बात लगती है। विमर्शों में घिरे शब्द-संसार को मंडित कर दिया गया है।  क्या आपने कभी विमर्शों से घिरे किसान, होरी, हामिद, औरतों के लिए सोचा था जैसा आज की लेखनीयां खूब बढ़ा-चढ़ाकर लिख रही है । और प्रेमचंद जी क्या आपने कभी यह भी सोचा था के उपन्यास केवल उपन्यास नहीं रहेगा। आज उपन्यास  किसी न किसी विमर्श के लेबल को लेकर बाजार में बिक रहे हैं। और तो और काव्य मंजरी भी पता नहीं किन किन विशेषणों से सज्जित होने लगी है । निबंधों की सीमाएं असीमित हो गई है । अनंत हो गई है।  क्या आपके समय के नाटक फिर से सजीव हो पाएंगे । रंगमंच के मंचों पर सम्मान समारोह मात्र होने लगे हैं।  आपको परकाया में लौटना होगा। एक नहीं अनेक परकाया में लौट आएं। और आकर जमाने को बताइए लेखनी क्या होती है । लिखने में इतनी ताकत होती है यह प्रेमचंद जी आप फिर आकर बताएं । अब तक आपने जो बताया वह पुस्तकालयों की अलमारियों में पड़ा है । आज पढ़ने वाले वह पढ़ रहे हैं जो इंटरनेट पर परोसा जा रहा है।  कलम का धनी यदि कहीं कोई छिपा बैठा है तो उसे सामने लाने के यत्न कोई नहीं कर रहा। आज ऐसा कोई प्रेमचंद अपने दम पर हजार 500 किताबें छपवा लेता है तो उसे मुफ्त में बांटने पर भी पाठक नहीं मिलते । आप लौट आइए प्रेमचंद जी ।


-✍️ मोहन थानवी

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