दैनिक युगपक्ष बीकानेर में 28 मई 2018 को प्रकाशित
हालात बेकाबू हैं सरकार
 नोटबंदी की तर्ज पर कुर्सीबंदी लागू कीजिए सरकार 

-- मोहन थानवी 

अब तो आम आदमी भी बेकाबू हालात पर चिंतित हो रहा है।  जिस आम आदमी को अपनी नून तेल लकड़ी की फिक्र सताती रही है वह राजनीतिक चिंताएं भी पाल बैठा है।  यह शिक्षा की वजह से राजनीतिक चेतना है या देश के बेकाबू होते हालात की भयावहता...। इस पर मंथन अलग से किया जा सकता है।  किंतु...। सरकार आपने नोटबंदी और उसके बाद जीएसटी लागू करके यह तो बड़े फक्र से कहा था की वोट की राजनीति नहीं करते हैं। कुर्सी के लिए नहीं देश हित के लिए निर्णय करते हैं। फिर यह कर्नाटक जैसे नाटक जनता के सामने एक उच्च मंच पर कैसे मंचित हो गए? इससे पहले वोट बैंक के लिए कुछ ऐसी बातें भी जनता के बीच आ गई जिनसे यह लगने लगा कि नोटबंदी और जीएसटी जैसे जटिल विषय पर बेबाक निर्णय कर एकबारगी जनता को सहर्ष परेशानी भुगतने के लिए तैयार कर देने वाले सरकार अब क्यों हिचकिचा रहे हैं कुर्सी बंदी के लिए? मतलब साफ है, राजनीति में जो उठापटक हो रही है कुर्सी के लिए उसे सब जानने लगे हैं । समाज, वर्ग समुदाय आरक्षण की घेराबंदी में आ चुके हैंं। प्रतिभावान को समृद्धि कोसों दूर जाती लग रही है । समर्थ व्यक्ति, समर्थ इस आशय से कि उसमें क्षमता होते हुए भी उसे अक्षम बता कर किसी ऐसे व्यक्ति को नौकरी दे दी जाती है जो उस समर्थ के मुकाबले तो असमर्थ है ही, सिद्ध हो जाता है । भूख और गरीबी और आक्रोश में आंदोलन रोष में प्रदर्शन हड़ताल सरकारी संपत्ति को नुकसान और भारतीय व्यक्ति समूहों का वर्ग जातिवाद समुदायों में बांटते जाना गरीब का और गरीब और अमीर का और अधिक अमीर होते जाना इन सब बेकाबू हालात पर सरकार आपको चिंता नहीं होती? खाद्य सुरक्षा जैसी योजनाओं में समय पर पात्रों को अन्न न मिलना यह एक उदाहरण मात्र है क्योंकि मुझे इस योजना में शामिल हुए कई सप्ताह गुजर गए किंतु मुझे अब तक 2 किलो गेहूं तक नहीं मिला। सरकार
यह खुला पत्र लिखने के पीछे एक कारण और भी है। आपको बहुत सी बार प्रबुद्ध वर्ग के हमारे वरिष्ठ भाइयों ने गाहे-बगाहे किन्हीं और विषयों को उठाते हुए यह सुझाव भी खुले आलेखों में दिया है जनप्रतिनिधियों के भत्ते मानदेय जनता के लिए तय भत्ते मानदेय से इतने प्रतिशत अधिक क्यों होते हैं कि सरकार के द्वारा महंगाई की रेखा कहीं अधर में दिखती है और आम जनता उस गरीबी की रेखा से नीचे नीचे नीचे रसातल तक दिखाई देती है और सदन में पहुंचे जनप्रतिनिधि  उस रेखा से ऊपर ऊपर हिमालय की चोटी से भी ऊपर आर्थिक लाभ प्राप्ति लेते दिखाई देते हैं। जनता और जनप्रतिनिधि के बीच की असमानता को दूर कीजिए सरकार।  कड़े कदम उठाइए । नोटबंदी और जीएसटी की तरह ऐसे नियम लागू कीजिए कि आर्थिक लाभ सेवा के अनुकूल सभी को समान रुप से मिलने लगें और दूसरा कदम ये उठाए कि आरक्षण रूपी दानव को खत्म कीजिए। इस आरक्षण को बाल्यावस्था तक के लिए ही तो तत्कालीन सरकार ने लागू किया था फिर इसे और बड़ा और बड़ा युवा करते चले गए और अब तो यह एक दानव के  रूप में, मदमस्त  अविवेकी जवान के रुप में हाथ में लाठी भाटा जैसे अस्त्र शस्त्र लेकर सड़कों पर उतरता दिखाई देता है सरकार इसे बेकाबू हालात नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे और सरकार ऐसे बेकाबू हालात पर हम आप और आम आदमी चिंतित नहीं होंगे तो कौन होगा यह सही है कि आप मुझ जैसे आम आदमी के विचारों को आप उचित समझें और राजनीति कर देशहित के हिसाब से हो सकता है इस में खामियां भी निकले किंतु आप तो आप हैं सरकार हैं आप अपनी तरफ से भी तो कुछ ऐसे कठोर कदम उठा सकते हैं जैसे कदमों की अपेक्षा हम और जनता आपसे कर रहे हैं सरकार हालात और अधिक बेकाबू हो चिंताएं और अधिक बड़े और कुर्सी पर डगमगाने लगे से पहले दिखा दीजिए वही जज्बा जो नोटबंदी और जीएसटी लागू करने में दिखाया था । और हां उससे भी अधिक हौसला और जज्बा आपने उस मानवता के दुश्मन के खिलाफ भी सर्जिकल स्ट्राइक के रूप में दिखाया था। ऐसे ही हौसले और जज्बे से आमजन के हित के लिए उठाए कदमों की  सभी को प्रतीक्षा है । क्योंकि हालात बेकाबू है सरकार। 🕉️


✍️  मोहन थानवी
✍️ 🙏 😊