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बांग्ला देश के राष्ट्रीय कवि काजी नजरुल इस्लाम ने श्यामा संगीत की रचनाओं को स्वरबद्ध किया था

बीकानेर 31 मई 2017 । शब्दरंग साहित्य एवं कला संस्थान की तरफ से काजी नजरुल इस्लाम का स्मृति दिवस श्री संगीत भारती परिसर में मनाया गया । काजी नजरुल इस्लाम के छायाचित्र पर पुष्पांजलि कर सभी ने अपने श्रद्धासुमन अर्पित किए । कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए  चेन्नई निवासी जमनादास सेवग ने काजी नजरुल इस्लाम को एक दार्शनिक, संगीत रचनाकार बताते हुए कहा कि काजी साहब कविता, साहित्य लेखन कला मे सिद्धहस्त थे । उन्होंने हिन्दुस्तान व बांग्लादेश के साहित्य में काफी योगदान किया । मुख्य अतिथि समाजसेवी आर.के.शर्मा ने कहा कि काजी नजरुल इस्लाम अंग्रेजों की नीतियों के विरुद्ध लिखा करते थे जिसके कारण उन्हें कई यातनाएं झेलनी पडी । विशिष्ठ अतिथि चन्द्रशेखर जोशी ने कहा कि काजी साहब की आर्थिक स्थिति काफी खराब थी लेकिन वे सच्चाई के रास्ते चलते रहे । बांग्ला देश ने उन्हें राष्ट्रीय कवि का दर्जा दिया । शब्दरंग के सचिव राजाराम स्वर्णकार ने काजी नजरुल इस्लाम के व्यक्तित्व को उजागर करते हुए कहा कि श्यामा संगीत की लगभग एक सौ से ज्यादा रचनाओं को काजी साहब ने स्वरबद्ध किया । इन रचनाओं को  बंगाल में  आज भी गाया जाता है । बंगाल में आज भी श्यामा संगीत को विशेष संगीत मानते  हैं । कार्यक्रम संयोजक डॉ. मुरारी शर्मा ने बताया कि नजरुल इस्लाम का जन्म 24 मई 1899 को हुआ व 29 अगस्त 1976 में नजरुल साहब ने ढाका में देह त्यागी । इनके बंगाली साहित्य पर कलकत्ता विश्वविद्ध्यालय ने 1945 में स्वर्ण पदक प्रदान कर साहित्य का मान बढाया । 1960 में भारत गणराज्य द्वारा पद्मभूषण की उपाधि प्रदान की गई । इस अवसर पर बंगाली कलाकार सपनकुमार भक्ता को दुपट्टा एवं स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया । सपनकुमार ने बंगाली संगीत ‘बोसोंतो ऐ लो ऐलो ऐलो रे’,शोशाने जा गिछे श्यामा मां, आमार कालो मेयेरे पाऐर तलाय सुनाकर चार चान्द लगा दिए । कार्यक्रम में जन्मेजय व्यास ने भी अपने विचार व्यक्त किए । आभार श्री संगीत भारती की प्राचार्य डॉ.कल्पना शर्मा ने ज्ञापित किया । 
- मोहन थानवी

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