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राजस्थानी डाइजेस्ट: बुलाकी शर्मा का राजस्थानी कहानी संग्रह “मरदजात अर ...

सात तालों में बंद चेहरों का आईना

० मोहन थानवी, बीकानेर

चार दशक से साहित्य के वृहद केनवास पर अहसास और अनुभवों को शब्दाकार देने वाले कथाकार, व्यंग्यकार, नाटककार बुलाकी शर्मा की कृति “मरदजात अर दूजी कहाणियां” के पात्र अंतर-आत्मा के भी अंतःस्थल को सामने ले आते हैं। कहानियों में समाज और परिवेश के वे पहलू भी रेखांकित होते जाते हैं जो राजस्थानी कहानियों में अब तक प्रायः ओझल रहे हैं। ऐसा शिल्प कवि-मन उकेर सकता है। बुलाकी जी काव्य-विधा को गूढ़ और स्वयं के लिए असाध्य मानते हैं। लेकिन उन्होंने कविताएं लिखी भी हैं, जिन्हें वे कविता नहीं मानते व कहते हैं इसलिए पाठकों तक नहीं पहुंचाई। बुलाकी जी का कहानी संग्रह “मरदजात अर दूजी कहानियां” कथा-शिल्प की बेजोड़ नजीर है।

यूं राजस्थानी साहित्य जगत में कहानी का क्षेत्र विस्तृत रहा है। नई कहानी के शिल्प में कतिपय ऐसी रचनाएं भी रही हैं जिनमें लोक कथाओं के सूत्र भी मिल जाते हैं। लेकिन राजस्थानी कहानी के परंपरागत स्वरूप से इतर यदि आधुनिक राजस्थानी कहानियों के गठन और कथा-परिवेश की तारतम्यता को विगत तथा वर्तमान परिप्रेक्ष्य में जानना समझना हो तो बुलाकी जी की कहानियां इस दिशा में महत्वपूर्ण साबित होगी।

नवाचार बुलाकी जी की रगों में है और कहानियों में भी विविध पात्रों से इसकी पुष्टि करते हैं। संग्रह की कहानी ‘अमूझती सूझ’ के पात्रों को ही लें, मंगल, मास्टर जी और मंगल की मां के मन को मानों पाठक सहजता से पढ़ लेता है। जब कथाकार मंगल के द्वारा पटाक्षेप करवाता है, आपकी जिद कायम रही तो मुझे घर छोड़कर जाने में कोई ऐतराज नहीं। मास्टर जी भोंचक रह जाते हैं। किंतु, यहां पाठक रोमांच और रस प्राप्त करता है।

बुलाकी जी ने कथा सृजन में ऐसी सिद्धहस्तता हासिल की है कि वे नव कोंपलों के सूर्य रश्मियों से मिलन पर चमकने की प्राकृतिक प्रक्रिया की भांति शनै शनै शब्द-शब्द गुंजाते हुए पात्र-चरित्र के उस मुखड़े को सामने ला खड़ा करते हैं, जो भवन की सात कोठियों से भी आगे अंधकार में लुप्त प्रायः होता है। इसी कथ्य-जादूगरी के कारण पाठक को बुलाकी जी की रचना की प्रथम पंक्ति से ही संवेदनाओं का सागर हिलोरे मारता दिखता है और वह तिलिस्मी पात्र के साथ मानवीयता का गहरा नाता महसूसता है। शीर्षक कहानी ‘मरदजात’ में बुलाकी जी ने एक नारी पात्र के अंतरमन को इस खूबी से उकेरा है कि पाठक समूची कहानी में सुगनी के चरित्र को जानने के लिए उत्सुक रहता है। खूबी यह कि कहानी के विराम तक पहुंचते-पहुंचते सुगनी का मन खोल कर पाठकों के सामने पसर रोमांचित कर देती है। अपने मान-सम्मान के लिए दुर्गा सदृश्य सुगनी ऐसा पात्र है जिस पर बुलाकी जी चाहें तो वृहद उपन्यास लिख सकते हैं।

सामाजिक सरोकारों का निर्वहन करते हुए संग्रह की अन्य कहानियों जैसे- ‘मरम’, ‘घाव’, ‘दूजो सरूप’, ‘बर्थ डे प्रजेंट’ आदि के पात्र और परिवेश हमें अपने आसपास घटने वाले प्रकरणों की याद दिलाते हैं। यही कहानीकार बुलाकी शर्मा जी की शैली पाठक को उनकी रचनाएं पढ़ने की ललक पैदा करती हैं।

कहानी ‘मुगदी कद’ के माध्यम से बुलाकी जी बालपन से दर्द के मर्म को सामने रखते हुए कुत्ते के मुंह में दबोचे हुए कबूतर की फड़फड़ाहट का ऐसा दृश्य उकेरते हैं और सवाल उठाते हैं, कि मुक्ति कब।/बुलाकी जी सफल नाटककार हैं। संग्रह की कहानियों में नाटकीयता की तुलना में यथार्थ अधिक प्रखरता से सामने आया है। सर्वाधिक उल्लेखनीय बात यह है कि कहानियों में प्रस्तुत चरित्र मुखौटा उतारे हुए और अपने मूल चेहरों को लिए इन कहानियों में देखाई देते हैं। यही बुलाकी जी की लेखनी की श्रेष्ठता और सफलता है।



राजस्थानी डाइजेस्ट: बुलाकी शर्मा का राजस्थानी कहानी संग्रह “मरदजात अर ...: पुस्तक : मरदजात अर दूजी कहाणियां / विधा : कहानी/ कहानीकार : बुलाकी शर्मा / संस्करण : 2013, प्रथम / पृष्ठ : 88, मूल्य : 150/- प्रकाशक : ऋ...

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