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पांच रुपए की दीर्घ कथा

Hindi / Sindhi / Rajasthani Novelist Mohan Thanvi 

पांच रुपए की दीर्घ कथा- 

 बाबूजी साग वाले से बोले -  बेटा चार टाइम के लिए 2-2 रुपए की मिर्च धनियां अदरक और 5-5रुपए की पालक मैथी मूली तोल दोगे या ज्यादा का लूँ ? साग वाले ने कहा काफी है बाबूजी । आपको न दूंगा तो जीवन कैसे सुधारूंगा । और एक रुपया खुला न हो तो 20 रुपए ही दे देना । रुपए चुका कर साग से भरा थैला संभाल बाबूजी बोले - महंगाई को तो पंख लगे हैं । वृद्धावस्था पेंशन के हम दोनों को मिलने वाले 500 रुपए से हम दोनों का गुजारा नहीं होता बेटा । जाने लगे कि एक बच्चे ने साग वाले की पीठ पर चढ़ते हुए कहा , बाबा स्कूल जा रहा हूं खर्ची दो । साग वाले ने उसे लाड़ करते हुए 5 रुपए दिए । बच्चा तुनक कर बोला - ये क्या बाबा, 5 रुपए की तो मिर्ची भी नहीं आती और मुझे लेनी है चॉकलेट। कम से कम 50 रुपए लूंगा । साग वाले ने बाबूजी से नजरें चुराते हुए 50 रुपए देकर बच्चे को विदा किया । बाबूजी भी रुके नहीं । साग वाला मुझसे बोला - देख लो मास्टर जी । चॉकलेट 50 और साग 5 का, इसलिए महंगाई तो बढ़ेगी ही । 

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